कई बार तिथि के अनुसार त्योहार मनाने को लेकर भ्रम की स्थिति बन रही है। कभी-कभी लोगों के बीच यह समस्या आ जाती है कि तिथि के अनुसार कोई विशेष त्यौहार कब मनाया जाए? इस बार समस्या यह है कि एकादशी उपवास कब रखें? एक बार फिर ऐसा ही हो रहा है कि देवउठनी एकादशी व्रत 1 नवंबर को रखें या 2 नवंबर को?
चलिए इस बात को विस्तार में समझते हैं। प्रायः हम उसी तिथि को त्योहार या उपवास मनाते हैं जो सूर्योदय को प्राप्त होती है, लेकिन एकादशी के संदर्भ में कुछ और बातें भी ध्यान रखनी चाहिए। जैसे की एकादशी का व्रत कौन-कौन रखता है, उनके क्या नियम होते हैं? हमें यह समझने की आवश्यकता है कि कुछ त्यौहार सूर्योदय तिथि के अनुसार मनाए जाते हैं (जैसे एकादशी आदि) और कुछ सूर्यास्त तिथि के अनुसार मनाए जाते हैं (जैसे प्रदोष या त्रयोदशी,दिवाली आदि)।
एकादशी व्रत दो प्रकार के संप्रदाय रखते हैं - स्मार्त (गृहस्थ / हम लोग) और वैष्णव (साधु-संत/विधवा)।
बहुत महत्वपूर्ण नियम यह है कि ग्रहस्थ को सदैव द्वादशी में ही पारण करना चाहिए। त्रयोदशी में पारण करने पर दोष लगता है। इसके विपरीत वैष्णवों को अपने व्रत का पारण त्रयोदशी में भी कर सकते हैं।
इस बार द्वादशी तिथि का क्षय हो रहा है और 1 नवंबर, 2025 को अरुणोदय काल से 4 घड़ी पहले भी तिथि प्राप्त नहीं हो रही है और 3 नवंबर को त्रयोदशी लग रही है।
इसीलिए वैष्णव 1 नवंबर, 2025 और 2 नवंबर, 2025 दोनों दिन व्रत रखेंगे। और त्रयोदशी में पारण करेंगे। क्योंकि उन्हें त्रयोदशी में पारण का दोष नहीं लगता है।
शस्त्रों में दशमीयुक्त एकादशी व्रत को निषेध माना गया है। परंतु द्वादशी के क्षय हो जाने पर स्मार्तों को दशमीयुता एवं वैष्णव सम्प्रदाय को द्वादशी-त्रयोदशीयुता एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए|
इसलिए मेरी समझ के अनुसार स्मार्त को 1 नवंबर, 2025 को एकादशी व्रत रखना चाहिए और 2 नवंबर, 2025 को पारण करना चाहिए। आपके संदर्भ के लिए, इसी विषय पर पंचांग का चित्र संलग्न है।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।