Mokshada Ekadashi also celebrated as ‘Gita Jayanti’ falls on the eleventh day of Shukla Paksha in the month of ‘Margashira.’ As the name reveals, Mokshada Ekadashi helps to achieve salvation or ‘Moksha’ from the cycle of birth and death. On this day Lord Krishna narrated the Holy Bhagavad Gita to Arjuna on the battlefield of Kurukshetra.
On 24th Dec, Parana Time - 07:11 AM to 09:15 AM
On Parana Day Hari Vasara End Moment - 12:59 PM
Time of the Muhurat
Ekadashi Tithi Begins - 08:16 AM on Dec 22, 2023
Ekadashi Tithi Ends - 07:11 AM on Dec 23, 2023
Vaishnava Mokshada Ekadashi on Saturday, December 23, 2023
On 24th Dec, Parana Time for Vaishnava Ekadashi - 07:01 AM to 09:15 AM
On Parana Day Dwadashi would be over before Sunrise
~~~ॐ नमो भगवते वासुदेवाय~~~
चंपा नगरी में एक प्रतापी राजा वैखानस रहा करते थे. उन्हें सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान था. बहुत प्रतापी एवम धार्मिक राजा थे. इसी कारण प्रजा में भी खुशहाली थी. कई प्रकंड ब्राह्मण उसके राज्य में निवास करते थे.
एक दिन राजा को स्वपन दिखा जिसमे उनके पिता नरक की यातनायें झेलते दिखाई दिये. ऐसा स्वपन देखने के बाद राजा बैचेन हो उठे और सुबह होते ही उसने अपनी पत्नी से अपने स्वप्न का विस्तार से बखान किया. राजा ने यह भी कहा इस दुःख के कारण मेरा चित्त कहीं नहीं लग रहा, मैं इस धरती पर सम्पूर्ण ऐशो आराम में हूँ और मेरे पिता कष्ट में हैं. यह जानने के बाद से मेरा श्री दुर्बल सा हो चूका हैं कृपा कर मुझे इसका हल बतायें.पत्नी ने कहा कि महाराज आपको आश्रम में जाना चाहिये.
राजा आश्रम गए. वहाँ कई सिद्ध गुरु थे, सभी अपनी तपस्या में लीन थे. महाराज पर्वत मुनि के पास गए उन्हें प्रणाम किया और समीप बैठ गए. पर्वत मुनि ने मुस्कुराकर आने का कारण पूछा. राजा अत्यंत दुखी थे उनकी आँखों से अश्रु की धार लग गई. तब पर्वत मुनि ने अपनी दिव्य दृष्टी से सम्पूर्ण सत्य देखा और राजा के सर पर हाथ रखा और यह भी कहा तुम एक पुण्य आत्मा हो, जो अपने पिता के दुःख से इतने दुखी हो. तुम्हारे पिता को उनके कर्मो का फल मिल रहा हैं. उन्होंने तुम्हारी माता को तुम्हारी सौतेली माता के कारण बहुत यातनाये दी. इसी कारण वे इस पाप के भागी बने और नरक भोग रहे हैं. राजा ने पर्वत मुनि से इस दुविधा के हल पूछा इस पर मुनि ने उन्हें मोक्षदा एकादशी व्रत पालन करने एवम इसका फल अपने पिता को देने का कहा. राजा ने विधि पूर्वक अपने कुटुंब के साथ व्रत का पालन किया और अपने पिता को इस व्रत का फल अपने पिता के नाम से छोड़ दिया, जिस कारण उनके पिता के कष्ट दूर हुये और उन्होंने अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया.
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